Section 69 BNS in Hindi | जाने क्या है BNS की धारा 69?

Section 69 BNS in Hindi – BNS की धारा 69 में धोखे से शादी और शादी का झूठा वादा करके किसी महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने को अपराध माना गया है। नए अपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत ‘ब्रेकअप’ के मामलों में 10 साल की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है।

धारा 69 के अनुसार, अगर कोई पुरुष ‘विवाह का वादा करके’ महिला को धोखा देता है और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाता है, तो उसे दस साल जेल की सजा और जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।

SECTION 69 BNS in Hindi – Bharatiya Nyaya Sanhita – New Criminal Laws

1 जुलाई से भारत में तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं। भारतीय न्याय संहिता (BNS) ने भारतीय पीनल कोड (IPC) 1860 की जगह ले ली है। BNS में IPC से अलग तरह के बदलाव भी किए गए हैं, जैसे कि सेक्शन 69 जिसमें धोखे से शारीरिक संबंध बनाने पर सजा का प्रावधान है। इस धारा के तहत, ‘धोखे से शादी’ और ‘प्यार का झांसा देकर किसी महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाना’ को गंभीर अपराध माना गया है, और इसके लिए 10 साल की जेल और जुर्माने का प्रावधान है।

BNS की धारा 69 भारत में 1 जुलाई 2024 से प्रभावी हो गई है। रिश्तों, सहमतियों और विवाह के मामले हमेशा से ही कानूनी दायरे में विवादास्पद रहे हैं, और इसी क्षेत्र में अब BNS की धारा 69 पर चर्चा चरम पर है। इस धारा के लागू होने के बाद, इस पर आम लोगों और विशेषज्ञों की विभिन्न प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। भारतीय दंड संहिता (IPC) में इस तरह के मामले का कोई विशेष प्रावधान नहीं था, जिसके कारण इन मामलों की सुनवाई IPC की धारा 90 के अंतर्गत होती थी। BNS की धारा 69 को विशेष रूप से विवादास्पद और महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

Section 69 BNS kya Hai? क्या है BNS की धारा 69?

एक्ट के अनुसार BNS की धारा 69 में लिखा है:

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 69 के अनुसार छल या धोखा देकर किसी महिला के साथ संबंध बनाने को अपराध माना गया है, SECTION 69 BNS में लिखा है:

जो कोई भी धोखे से या किसी महिला से शादी करने का वादा करके बिना उसे पूरा करने के इरादे से उसके साथ यौन संबंध बनाता है, ऐसा यौन संबंध बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आता है, उसे किसी भी तरह के कारावास से दंडित किया जाएगा। जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी और वह जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।”

स्पष्टीकरण:

“धोखेबाज़ साधनों” में रोजगार या पदोन्नति के लिए प्रलोभन या झूठा वादा करना या पहचान छिपाकर विवाह करना शामिल है।

सजा और जुर्माना:

अपराधी को 10 साल तक के कारावास की सजा हो सकती है और जुर्माना भी देना पड़ सकता है।

इस प्रावधान के तहत दो मापदंडों को शामिल किया गया है:

  • धोखेबाज़ी का सहारा: इसमें रोज़गार या पदोन्नति का झूठा वादा, प्रलोभन या पहचान छिपाकर शादी करना शामिल है।
  • शादी का झूठा वादा: इसके तहत किसी पुरुष द्वारा महिला से शादी करने का वादा करके सहमति से उसका यौन शोषण करना शामिल है।

SECTION 69 BNS के तहत सजा के लिए सिर्फ तीन बातें साबित करनी होंगी :

  1. जब आरोपी ने कोई वादा किया तो शुरुआत से उसका वादा निभाने का इरादा नहीं था
  2. वादा करते हुए उसने छल किया. जैसे अपनी पहचान छिपाई आदि
  3. सहमित से शारीरिक संबंध बनाया हो. (ऐसी सहमति को कंसेंट नहीं माना जाएगा, क्योंकि ये छल के दायरे में आता है

उपरोक्त तीन बातें साबित होने पर आरोपी को सजा हो सकती है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि जब कोई वादा किया गया तो उसे निभाने का इंटेंशन था या नहीं यह कैसे साबित होगा?

किसी व्यक्ति पर बीएनएस की धारा 69 लगने पर यह साबित करना मुश्किल होगा कि वह पीड़ित महिला से शादी करना चाहता था, लेकिन किसी कारण से नहीं कर सका।

SECTION 69 BNS का उद्देश्य और प्रावधान

धारा 69 विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि IPC में धोखे से यौन संबंध बनाने के संबंध में कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं था। IPC की धारा 90 के तहत, भय या गलत धारणा के तहत दी गई सहमति को सहमति नहीं माना जाता था। BNS की धारा 69 में, ‘छल’ का विस्तृत स्पष्टीकरण दिया गया है, जिसमें नौकरी या प्रमोशन का झूठा वादा, प्रलोभन और पहचान छिपाकर शादी करना शामिल है। धारा 69 में ‘धोखे से शादी और, नौकरी, पदोन्‍नति या शादी का झूठा वादा करके किसी महिला के साथ शारीरि संबध बनाने को अपराध माना गया है।

BNS की धारा 69 के तहत सहमति से ऐसे यौन संबंध को अपराध माना जायेगा जिसमें कोई पुरुष किसी महिला से शादी करने का वादा करता है लेकिन ऐसा करने का उसका कोई इरादा नहीं है। इसका सीधा मतलब ये है कि यदि कोई पुरुष ऐसी परिस्थितियों में किसी महिला के साथ यौन गतिविधि में संलग्न होता है, तो इसे एक अपराध माना जाएगा।

अदालती बहस और चुनौतियाँ

इन मामलों पर फैसला सुनाते समय, अदालतों ने दो बातों पर ध्यान दिया है: पहला, क्या महिला की सहमति झूठे शादी के वादे पर आधारित थी, और दूसरा, क्या वादा केवल पूरा नहीं हो सका या शुरू से ही झूठा था। सिद्धांत के अनुसार, अगर कोई रिश्ता टूट जाता है या किसी अन्य कारण से शादी का वादा पूरा नहीं हो पाता, तो तब तक सजा नहीं दी जा सकती जब तक कि वादा करते समय वह सच्चा हो। हालांकि, इरादे को साबित करने वाली साक्ष्य संबंधी चुनौतियां बनी रहती हैं।

अतीत में ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां महिलाओं ने संबंध टूटने पर बलात्कार का आरोप लगाया है और बाद में अदालत से पुरुष बरी हो गया क्योंकि सम्बंद सहमति से बनाये गए थे। लेकिन धारा 69 के तहत महिलाएं झूठे वादों पर यौन संबंध के लिए सहमति जताने का दावा कर सकती हैं।

गिरफ्तारी और व्यवहारिक चुनौतियाँ

धारा 69 के तहत, पुलिस द्वारा प्रारंभिक जांच के बाद गिरफ्तारी की जा सकती है। हालाँकि, अदालत में सबूतों के साथ एक पुख्ता मामला बनाना मुश्किल हो सकता है। टेक्स्ट मैसेज, कॉल रिकॉर्डिंग और तस्वीरों का इस्तेमाल सबूत के रूप में किया जा सकता है, लेकिन यह साबित करना कठिन होगा कि यौन संबंध केवल इस वादे के तहत स्थापित किए गए थे कि शादी होगी। विवाह का इरादा भावनात्मक होता है और इसे साबित करना बहुत मुश्किल होगा।

सामाजिक और कानूनी प्रभाव

यह धारा रिश्तों को कानूनी दृष्टिकोण से जटिल बना सकती है। यदि रिश्ता शादी में परिणत नहीं होता है, तो पुरुषों को झूठे मुक़दमे में फसाकर परेशान किए जाने का खतरा बना रहेगा। इसके अतिरिक्त, यह धारा समाज में यौन स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर भी प्रभाव डाल सकती है।

क्या SECTION 69 ब्रेकअप को अवैध बनाती है?

धारा 69 ब्रेकअप को अवैध बनाती है, और अगर रिश्ता शादी में तब्दील होने से पहले ही टूट जाता है तो पुरुषों को फर्जी मुक़दमे में आसानी से फसाया जा सकता है। इस कानून के तहत महिलाएं ‘शादी का वादा करके’ मुकर जाने वाले पुरुष पर केस कर सकती हैं। अगर ब्रेकअप किसी और वजहों से होता है तो भी ‘शादी का वादा करके’ संबंध बनाने का केस किया जा सकता है और सबूतों के बिना पुरुषों को गिरफ्तार करना आसान हो सकता है।

SECTION 69 के तहत ब्रेकअप करने के बाद पुरुषों को जाना पड़ सकता है जेल?

धारा 69 के तहत पुलिस प्रारंभिक जांच के बाद गिरफ्तारी कर सकती है और सिर्फ महिला के बयान पर ही पुरुष को गिरफ्तार किया जा सकता है। अदालत सबूतों के आधार पर काम करती है और ऐसे मामलों में सबूत पेश करना काफी मुश्किल हो सकता है। सबूत के तौर पर टेक्स्ट मैसेज, कॉल रिकॉर्डिंग, और तस्वीरों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

टेक्स्ट मैसेज, कॉल, और तस्वीरों को यहाँ महत्वपूर्ण माना जाएगा। ये सबूत यह साबित कर सकते हैं कि शादी के बारे में दोनों के बीच कोई चर्चा हुई थी या नहीं। हालांकि, यह साबित करना कठिन हो सकता है कि क्या यौन संबंध केवल शादी के वादे के कारण बने थे या नहीं।

धारा 69 के कारण अनुचित गिरफ्तारी का भी खतरा हो सकता है। अदालत में ऐसे मामले वर्षों तक चल सकते हैं और यह एक पुरुष के जीवन के कई पहलुओं को नुकसान पहुंचा सकता है।

ईगो की लड़ाई में पुरुष पार्टनर को जेल जाने का खतरा

किसी भी रिश्ते को पूरी तरह से साबित नहीं किया जा सकता कि वह सही ढंग से चल रहा है या नहीं। आप सभी मैसेज या फोन कॉल्स को रिकॉर्ड नहीं कर सकते। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि धोखा या छल को कैसे साबित किया जाए?

धारा 69 के तहत, पहले से ही यह मान लिया जाता है कि पुरुष ही आरोपी है और उसे अपनी निर्दोषता साबित करनी होती है। अतीत में, कई मामलों में अदालत में यह देखा गया है कि जब किसी रिश्ते में दरार आई, तो कुछ महिलाओं ने अपने पुरुष साथी को सबक सिखाने या अपने अहं को संतुष्ट करने के लिए उन पर रेप का आरोप लगाया। हालांकि, बाद में जब ये केस झूठे साबित हुए, तो पुरुष को अदालत ने बरी कर दिया।

क्यों हो रहा है SECTION 69 BNS पर विवाद?

धारा 69 में ‘छल’ की परिभाषा के कारण, विशेषकर पुरुषों को जेल जाने और झूठे मुकदमों का सामना करने का जोखिम बढ़ गया है।

पहले, ज्यादातर लोगों की अरेंज्ड मैरिज होती थी, लेकिन आजकल के रिश्ते पुराने समय से काफी अलग हैं। आजकल शादी से पहले लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की अवधारणा को मान्यता मिल रही है। लिव-इन रिलेशनशिप में, बिना शादी के लड़का और लड़की एक दूसरे के साथ पति-पत्नी की तरह एक ही घर में रहते हैं और शारीरिक संबंध भी बनाते हैं। इस दौरान कपल्स यह आकलन करते हैं कि वे जीवन भर एक दूसरे के साथ रहना चाहते हैं या नहीं, लेकिन हर लिव-इन रिलेशनशिप सफल नहीं होती।

BNS की धारा 69 के तहत महिलाओं को अपने पार्टनर को जेल भिजवाने की शक्ति मिल गई है अगर रिश्ता टूट जाता है, लेकिन इसमें पुरुषों के बचाव के लिए कोई प्रावधान नहीं है। BNS की धारा 69 के तहत विश्वसनीय सबूत के बिना पुरुषों को गिरफ्तार करना आसान हो गया है।

भारतीय न्याय संहिता 2023 (BNS) की धारा 69 में धोखे से यौन संबंध बनाने को एक अलग अपराध माना गया है। अदालती मामलों में इसके प्रभाव और इसके कार्यान्वयन को लेकर अभी कई सवाल बाकी हैं। यह देखना बाकी है कि अदालतें इस नए प्रावधान की व्याख्या और लागू कैसे करेंगी, और क्या यह संवैधानिक चुनौतियों का सामना करेगा।

भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) की धारा 69 ने महिलाओ के लिए पुरषो पर फर्जी केस करने का रास्ता भी आसान कर दिया है। जब भी किसी कपल का ब्रेकअप होगा तो महिला साथी द्वारा शिकायत दर्ज कराने का जोखिम बना रहेगा, क्योंकि ज्यादातर रिलेशनशिप में ब्रेकअप होते रहते हैं। ऐसे में महिला पार्टनर के FIR दर्ज कराने की आशंका बनी रहेगी। जिस तरह से रेप के झूठे मामले बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए Section 69 BNS का दुरुपयोग बोहत आसानी से किया जा सकता है।

BNS की धारा 69 लागू होने से पहले IPC में ‘शादी का झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाने’ पर क्या कानून था?

भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) में ‘धोखे से यौन संबंध’ के अपराध को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। हालांकि, धारा 90 के तहत यह कहा गया है कि यौन संबंध की सहमति अवैध मानी जाएगी, यदि वह सहमति गलतफहमी या डर के आधार पर दी गई है। ऐसे मामलों में आरोपियों पर धारा 375 (रेप) के तहत कार्यवाही की जाती थी।

IPC के तहत इस प्रकार के अपराध का निपटारा दो प्रमुख प्रावधानों द्वारा किया जाता है: धारा 375 और धारा 90

धारा 90 डर या गलतफहमी के तहत दी गई सहमति से संबंधित है और धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है और यह उल्लेख करती है कि सहमति के बावजूद, निम्नलिखित स्थितियों में यौन संबंध को बलात्कार माना जाएगा:

  1. इच्छा के विरुद्ध।
  2. सहमति के विरुद्ध।
  3. धमकी के आधार पर सहमति: यदि सहमति उस महिला ने दी है जिसे जान का खतरा या गंभीर चोट का भय है।
  4. गलत पहचान: यदि सहमति देने वाली महिला यह मानती है कि यौन संबंध बनाने वाला व्यक्ति उसका पति है, जबकि वह असल में नहीं है।
  5. नशे या अस्वस्थता के आधार पर सहमति: यदि सहमति देने वाली महिला मानसिक रूप से अस्वस्थ हो या नशे में हो, जिससे वह समझ नहीं पा रही हो कि क्या हो रहा है।
  6. अल्पायु: यदि महिला की आयु 18 वर्ष से कम है, तो सहमति मायने नहीं रखती।
  7. सहमति देने में असमर्थता: यदि महिला सहमति देने में असमर्थ है।

इन प्रावधानों के आधार पर, IPC में ‘शादी का झूठा वादा करके संबंध बनाने’ को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया था, लेकिन ऐसे मामलों में उपरोक्त धाराओं के तहत ही कार्यवाही की जाती थी।

शादी का झूठा वादा बनाम वादे का उल्लंघन:

उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने Mandar Deepak Pawar vs State of Maharashtra (2022) मामले में शादी के झूठे वादे और वादे के उल्लंघन के बीच महत्वपूर्ण अंतर बताया:

झूठा वादा: यह वह वादा है जो यह जानते हुए किया गया हो कि इसे पूरा नहीं किया जाएगा।

वादे का उल्लंघन: यह अच्छे विश्वास से किया गया ऐसा वादा है जिसे बाद में किसी कारणवश पूरा नहीं किया जा सका। यानी, अगर कोई पुरुष यह साबित कर सकता है कि उसने महिला के साथ यौन संबंध बनाने से पहले उससे शादी करने का इरादा किया था, लेकिन बाद में किसी ऐसे कारण से उससे शादी करने में असमर्थ रहा, जो कानूनी रूप से दंडनीय नहीं है, तो इसे वादे का उल्लंघन माना जाएगा, न कि झूठा वादा। शादी के लिए झूठे वादे और उस वादे के उल्लंघन के बीच अंतर है जो अच्छे विश्वास में किया जाता है लेकिन बाद में पूरा नहीं किया जाता है।

पुरुष द्वारा विवाह करने के इरादे का सबूत:

शादी के झूठे वादे को गलत या सही साबित करने के लिए पूरा मामला दो मुख्य बातो के इर्द-गिर्द घूमता है:

  1. महिला की सहमति कैसे प्राप्त की जाती है: यह पुष्टि करना कि सहमति झूट के सहारे ली गयी थी या सच्ची थी।
  2. क्या पुरुष शादी करने का इरादा रखता है: यह पुष्टि करना कि पुरुष का इरादा था कि वह वाकई शादी करेगा।

सहमति से सेक्स के मामलों पर केस लॉ – Case Laws on Sex by Consent

न्यायालय ने कई फैसले में यह स्पष्ट किया है कि विवाह के इरादे का प्रमाण कब मान्य होता है और कब नहीं? जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि आरोपी शादी, नौकरी या पदोन्‍नति का झूठा वादा करके शारीरिक सम्बंद बनाने का दोषी है या नहीं। इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण मामले निम्नलिखित हैं:

रोहित तिवारी बनाम दिल्ली राज्य (2016): इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह माना कि अगर एक पूर्ण वयस्क महिला शादी के वादे पर यौन संबंधों में सहमति देती है और वे लंबे समय तक ऐसी गतिविधि में शामिल रहते हैं, तो यह उसकी संकीर्णता का प्रमाण है, न कि गलत धारणा से प्रेरित कार्य।

उदय बनाम कर्नाटक राज्य (2003): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह तय किया कि विवाह के झूठे वादे के आधार पर दी गई सहमति की आईपीसी की धारा 375 के तहत प्रायोज्यता का मूल्यांकन मामले-दर-मामले के आधार पर किया जाना चाहिए।

नईम अहमद बनाम राज्य (NCT दिल्ली) (2023): इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह तय किया कि शादी के वादे के उल्लंघन को झूठा वादा मानना और किसी व्यक्ति पर आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार के अपराध के लिए मुकदमा चलाना मूर्खता है।

ब्रेकअप के बाद SECTION 69 के झूठे मुकदमे से कैसे करे अपना बचाव?

जब महिला पार्टनर ब्रेकअप करने के बाद झूठा मुकदमा करेगी तो गिफ्ट्स बिल्स, ट्रिप्स बिल्स, होटल बिल्स, WhatsApp मैसेज, टेक्स्ट मैसेज, फ़ोन कॉल, वीडियो कॉल, फोटो और वीडियो को महत्वपूर्ण सबूत माना जाएगा। अदालत में इन सबूतों की अहम भूमिका होगी, जो ये तय करने में मदद करेंगे कि दोनों के बीच शादी के बारे में कोई चर्चा हुई थी या नहीं। हालांकि, यह साबित करना कठिन हो सकता है कि क्या यौन संबंध केवल शादी के वादे के कारण ही बने थे या नहीं।

SECTION 69 के झूठे मुकदमे से बचाव के लिए आरोपी को एक अच्छे वकील से कानूनी सहायता लेने के साथ खुद भी सबूत इकट्ठा करने होंगे।

………….

हम कानून के दुरुपयोग के खिलाफ हैं। यदि आप इस यात्रा में हमारे साथ जुड़ना चाहते हैं, तो हमसे संपर्क करें। 

Contact us at section69bns@gmail.com

Scroll to top